--> Appreciation of the Poem Madhurithu | मधुऋतु कविता की आस्वादन-टिप्पणी | Plus One Hindi |
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मधुऋतु कविता की आस्वादन-टिप्पणी 



In HINDI


सुप्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार जयशंकर प्रसाद की कविता है ‘मधुऋतु। यह एक सुंदर कविता है। ‘मधुऋतु’ छायावादी कविता है। कविता में वसंतऋतु का सुंदर वर्णन हुआ है। वसंतऋतु आ गया है। वह भूली-सी है। कवि उसे एक व्यथा – साथिन के समान देखते हैं। कवि अपने मन में उसके लिए छोटी कुटिया बना देते हैं। कवि कहते हैं कि प्रेमी रहता है भूमि और आकाश के बीच में। प्रेमविहीन लोग यहीं पर नहीं रहते। कवि का प्रेम वसंतऋतु रूपी प्रेमिका से हुआ है। इससे कवि के हृदय प्रेममय हो गया है। इस प्रेममय वातावरण में आशा के नये अंकुर झूलते हैं। इस प्रेममय वातावरण में मलयानिल बहकर आता है। उसकी लहरें सिहर मर देती है। 

मलयानिल कवि के मानस नयन नलिन को चुंबन करके जगाता है।वसंतऋतु में प्रभात लालिमा से भरा-हुआ रहता है। संसार में हमेशा रोशनी भी रहती है। वसंतऋतु में चाँदनी फैल जाती है और प्रकृति डिम की बूंदों की वर्षा करती है। वसंतऋतु में प्रेम का एकांत सृजन कार्य होता है। कवि निवेदन करते हैं कि इस में किसी को बाधा उपस्थित नहीं करनी है। कवि का उपदेश है अपने में जो कुछ सुन्दर है उसे प्रेम-युग्मों को दे देना है। ‘मधुऋतु’ में प्रकृति चित्रण, मानवीकरण, सौंदर्यवर्णन, प्रेमानुभूति आदि छायावादी प्रवृत्तियों का सुन्दर समावेश हुआ है। पदावली अत्यंत कोमल है। पंक्तियों का आशय आसानी से समझ सकते हैं। शीर्षक सार्थक और संगत है।

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