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 अनुताप  Kerala Plus One Hindi Textbook Answers Unit 1 Chapter 1 








Questions and Answers

प्रश्न 1.

‘उसे शाक-सा लगा’ क्यों?

अनुताप

“बाबूजी आइए…… मैं पहुँचाए देता हूँ।”

एक रिक्शेवाले ने उसके नज़दीक आकर कहा,

“असलम अब नहीं आएगा।” “क्या हुआ उसको?”

रिक्शे में बैठते हुए उसने लापरवाही से पूछा। पिछले

चार-पाँच दिनों से असलम ही उसे दफ्तर पहुंचाता रहा था।

“बाबूजी, असलम नहीं रहा…”

“क्या?”

उसे शाक-सा लगा,

“कल तो भला चंगा था।

“उसके दोनों गुर्दो में खराबी थी, डाक्टर ने रिक्शा

चलाने से मना कर रखा था,”

उसकी आवाज़ में गहरी उदासी थी,

“कल आपको दफ्तर पहुंचाकर लौटा तो पेशाब बंद हो

गया था, अस्पताल ले जाते समय उसने रास्ते में ही दम तोड़ दिया था ……”

उत्तर:

प्रश्न 2.

इनके साथ हमदर्दी जताना बेवकूफ़ी होगीयहाँ यात्री का कौनसा मनोभाव प्रकट हो रहा है?

उत्तर:

श्रमिक वर्ग के प्रति उपेक्षा का मनोभाव और सहजीव के प्रति संवेदना हीनता का मनोभाव।

ये प्रसंग किन-किन पात्रों से संबंधित हैं?


प्रश्न 4.

i) उसे शाक-सा लगा। उसकी

ii) आवाज़ में गहरी उदासी थी।

iii) उसने रास्ते में ही दम तोड़ दिया।

iv) कल की घटना उसकी आँखों के आगे सजीव हो उठी।

v) एकबारगी उसकी इच्छा हुई कि रिक्शे से उतर जाए।

vi) किसी कार के हार्न से चौंककर वह वर्तमान में आ गया।

vii) उसके लिए यह चढ़ाई खास मायने नहीं रखती थी।

viii) वह अपराधी की भाँति सिर झुकाए चल रहा था।

उत्तर:

i) यात्री को शाक-सा लगा।

ii) रिक्शेवाले की आवाज़ में गहरी उदासी थी।

iii) असलम ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया।

iv) कल की घटना यात्री की आँखों के आगे सजीव हो उठी।

v) एकबारगी यात्री की इच्छा हुई कि रिक्शे से उत्तर जाए।

vi) किसी कार के हार्न से चौककर यात्री वर्तमान में आ गया।

vii) रिक्शेवाले के लिए यह चढ़ाई खास मायने नहीं रखती थी।

viii) यात्री अपराधी की भाँति सिर झुकाए चल रहा था।

प्रश्न 5.

यात्री का मन संघर्ष से भरा था। वह अपना संघर्ष डायरी में लिख रहा है। वह डायरी लिखें।

उत्तर:


2014 माच 5. बुधवार


नटराज नगरः

आज मेरे लिए बड़ा मानसिक संघर्ष का दिन है। रिस्शेवाला असलम की मृत्यु की खबर सुनकर मैं व्याकुल हो गया। असलम के प्रति मुझसे हमदर्दी का अभाव हुआ। मेरा दिल पश्चाताप से उत्पन्न अनुताप से भरा है। नटराज टाकीज़ के पास की चढ़ाई पार करते समय मुझे असलम की रिक्शे से उतरना था। मैं नहीं जानता था कि असलम के गुर्यों में खराबी थी। मज़बूत कदकाठी रिक्शेवाले से हमदर्दी से मैंने ज़रूर व्यवहार किया। फिर भी मेरा आत्मसंघर्ष मैं कैसे निकालूँ?


असलम के प्रति मेरी श्रद्धांजलि…. हे भगवान! मुझे माफी दें….. भगवान मुझे अच्छी नींद दें।


प्रश्न 6.

असलम की मृत्यु की खबर

उत्तर:

पत्नी : लगता है आप बड़ी परेशानी में हैं?

यात्री : हैं… हाँ… आप ने ठीक समझी।

पत्नी : क्या हुआ?

यात्री : एक रिक्शावाला…

पत्नी : रिक्शावाला?

यात्री : मैं बताता हूँ।

पत्नी : हाँ…हाँ… क्या नाम है उसका?

यात्री : असलम।

पत्नी : आप और असलम के बीच….

यात्री : असलम की मृत्यु हो गयी।

पत्नी : अरे बापरे! कैसे?

यात्री : उसके दोनों गुदों में खराबी थी।

पत्नी : हे भगवान! तो?

यात्री : मैंने यह न जानकर उससे….

पत्नी : उससे?

यात्री : रिक्शा चला कर बिना हमदर्दी से व्यवहार किया।

पत्नी : आह!

यात्री : मैं पश्चाताप विवश हूँ।

पत्नी : मैं समझ सकती हूँ।

यात्री : पश्चाताप से उत्पन्न अनुताप से…..

पत्नी : अनुताप से…

यात्री : मेरे मन ने….,

पत्नी : साफ बताईए….

यात्री : मुझे उदास बना लिया है।

पत्नी : हाँ….हाँ… मैं ने अब समझ ली आप की परेशानी का कारण।

यात्री : मैं क्या करूँ?

पत्नी : चिंता छोडिए। असलम के परिवार के लिए कुछ हम कर देंगे।

यात्री : जरूर! आप एक चाय बनाईए।

पत्नी : जी हाँ….. अब तैयार होगा।


प्रश्न 7.

असलम के प्रति अपना व्यवहार

उत्तर:

यात्री अपराधी ही है। यह इसलिए है कि असलम के प्रति यात्री द्वारा दिखाई गयी उपेक्षा के कारण असलम की मृत्यु हो गयी थी।

प्रश्न 8.

हमदर्दी का अभाव

उत्तर:

अनुताप

सालों के बाद मैं उस दिन की याद में आत्मकथा लिखता हूँ। असलम नामक एक रिक्शावाला मुझे दफ्तर ले जाता था। एक दिन दफ्तर जाते समय असलम का साथी रिक्शावाले से मैंने समझा कि असलम मर गया है। असलम के दोनों गुर्दो में खराबी थी। डॉक्टर ने रिक्शा चलाने से उसे मना कर रखा था। मुझे यह नहीं मालूम था। यह न जानकर मैंने असलम से रिक्शा चलाया। रिक्शे में बैठ कर चढ़ाई पर मैंने उसे बड़ी परेशानी दी।


रिक्शा चलाते हुए असलम धीरे-धीरे कराह रहा था। बीच-बीच में एक हाथ से पेट पकड़ लेता था। दाहिना हाथ गद्दी पर जमाकर असलम बड़ी कठिनाई और परेशानी से चकाई पर रिक्शा खींच रहा था। वह बुरी तरह हाँफ रहा था। उसके गंजे सिर पर पसीने की नन्हीं नन्हीं बूंदें दिखाई देने लगी थीं। लेकिन असलम के प्रति मेरे व्यवहार में हमदर्दी का बड़ा अभाव हुआ था। आज सालों के बाद भी मेरे मन से असलम की दयनीय अवस्था का चित्र न मिट जाता। मेरा मन पश्चाताप से उत्पन्न अनुताप से आज भी भर रहा है। असलम! आप को मेडी श्रद्धांजली क्षमायाचना के रूप में मैं समर्पित करता हूँ।

प्रश्न 9.

पश्चाताप से उत्पन्न अनुताप

उत्तर:

मित्र : अरे! आप क्यों इतना उदास हैं?

यात्री : मैं…. उदास….

मित्र : हैं… हाँ… बड़ी उदासी मैं हैं आप

यात्री : आप ने ठीक समझा।

मित्र : अरे! बापरे! क्या हुआ?

यात्री : एक रिक्शावाला…

मित्र : हाँ…हाँ… क्या नाम है उसका?

यात्री : असलम।

मित्र : आप और असलम के बीच….

यात्री : असलम की मृत्यु हो गयी।

मित्र : अरे बापरे! कैसे?

यात्री : उसके दोनों गुदों में खराबी थी।

मित्र : हे भगवान! तो?

यात्री : मैंने यह न जानकर उससे….

मित्र : उससे?

यात्री : रिक्शा चला कर बिना हमदर्दी से व्यवहार किया।

मित्र : आह!

यात्री : मैं पश्चाताप विवश’हूँ।

मित्र : मैं समझ सकता हूँ।

यात्री : पश्चाताप से उत्पन्न अनुताप से…..

मित्र : अनुताप से…

यात्री : मेरे मन ने….

मित्र : साफ बताईए….

यात्री : मुझे उदास बना लिया है।

मित्र : हॉ….हाँ… मैं ने अब समझ लिया आप की उदासी का कारण।

यात्री : मैं क्या करूं?

मित्र : चिंता छोडिए। असलम के परिवार के लिए कुछ कर दीजिए।

यात्री : जरूर।

प्रश्न 11.


संवेदना की अनुभूति है।




प्रश्न 12.


आत्मसंघर्ष की अभिव्यक्ति है।




प्रश्न 13.


आत्मपरक शैली है।


उत्तर:


कहानी


ii) अलारक्खी क्यों हताश थी?


iii) उपर्युक्त अंश का संक्षेपण करें।


iv) अलारक्खी के उस दिन की डायरी कल्पना करके लिखिए।


v) उपर्युक्त अंश केलिए उचित शीर्षक दें।


प्रश्न 14.

पाठ के केंद्र भाव को सूचित करता है।

उत्तर:

अनुताप’ शीर्षक बिलकुल सार्थक है। पाठ का केन्द्रभाव यात्री का अनुताप ही है। इसको यह शीर्षक ठीक सूचित करता है। पाठ पढ़कर चरमसीमा तक पहुँचने के लिए शीर्षक हमें प्रेरित करता है। पाठ का संक्षिप्त हम शीर्षक से समझ सकते हैं। इन कारणों से अनुताप शीर्षक सार्थक और संगत है।


प्रश्न 15.

चरमसीमा तक पढ़ने को प्रेरित करता है।


प्रश्न 16.

संक्षिप्त, पर स्पष्ट है।


प्रश्न 17.

सार्थक एवं संगत है।


प्रश्न 18.

निम्नलिखित पाठभाग का अनुवाद मातृभाषा में कीजिए:

आगे वह कुछ नहीं सुन सका। एक सन्नाटे ने उसे अपने आगोश में ले लिया….। कल की घटना उसकी आँखों के आगे सजीव हो उठी। रिक्शा नटराज टाकीज़ पार कर बड़े डाकखाने की ओर जा रहा था। रिक्शा चलाते हुए असलम धीरे-धीरे कराह रहा था। बीच बीच में एक हाथ से पेट पकड़ लेता था। सामने डाक बंगले तक चढ़ाई ही चढ़ाई थी। एकबारगी उसकी इच्छा हुई थी कि रिक्शे से उतर जाए। अगले ही क्षण उसने खुद को समझाया था – रोज़ का मामला है….. कब तक उतरता रहेगा….. ये लोग नाटक भी खूब कर लेते हैं, इनके साथ हमदर्दी जताना बेवकूफी होगी….. अनाप-शनाप पैसे माँगते हैं, कुछ कहो तो सरे आम रिक्शे से उतर पड़ा था, दाहिना हाथ गद्दी पर जमाकर चढ़ाई पर रिक्शा खींच रहा था। वह बुरी तरह हाँफ रहा था, गंजे सिर पर पसीने की नन्हीं-नन्हीं बूंदे दिखाई देने लगी थीं…..।


सालों के बाद मैं उस दिन की याद में आत्मकथा लिखता हूँ। असलम नामक एक रिक्शावाला मुझे दफ्तर ले जाता था। एक दिन दफ्तर जाते समय असलम का साथी रिक्शावाले से मैंने समझा कि असलम मर गया है। असलम के दोनों गुर्दो में खराबी थी। डॉक्टर ने रिक्शा चलाने से उसे मना कर रखा था। मुझे यह नहीं मालूम था। यह न जानकर मैंने असलम से रिक्शा चलाया। रिक्शे में बैठ कर चढ़ाई पर मैंने उसे बड़ी परेशानी दी।

रिक्शा चलाते हुए असलम धीरे-धीरे कराह रहा था। बीच-बीच में एक हाथ से पेट पकड़ लेता था। दाहिना हाथ गद्दी पर जमाकर असलम बड़ी कठिनाई और परेशानी से चकाई पर रिक्शा खींच रहा था। वह बुरी तरह हाँफ रहा था। उसके गंजे सिर पर पसीने की नन्हीं नन्हीं बूंदें दिखाई देने लगी थीं। लेकिन असलम के प्रति मेरे व्यवहार में हमदर्दी का बड़ा अभाव हुआ था। आज सालों के बाद भी मेरे मन से असलम की दयनीय अवस्था का चित्र न मिट जाता। मेरा मन पश्चाताप से उत्पन्न अनुताप से आज भी भर रहा है। असलम! आप को मेडी श्रद्धांजली क्षमायाचना के रूप में मैं समर्पित करता हूँ


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